भारत जोड़ो यात्रा : राष्ट्रीय चेतना का प्रहरी
भारत जोड़ो न्याय यात्रा एक राजनीतिक और सामाजिक अभियान है जिसका मुख्य उद्देश्य भारत की एकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है। इस यात्रा का मुख्य अध्यक्ष श्री राहुल गांधी हैं, जो इसे विभिन्न राज्यों में संचालित कर रहे हैं। यह यात्रा भारतीय समाज में सामाजिक न्याय, एकता और विकास के प्रति लोगों के जागरूकता बढ़ाने का प्रयास है। इस अभियान के तहत, लोगों को सामाजिक और आर्थिक असमानता के खिलाफ लड़ने के लिए एक साथ आने का आह्वान किया जाता है। यह यात्रा विभिन्न राज्यों के सांसदों, विधायकों, और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर आयोजित की गयी है |
जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे ने कहा है कि दुनिया में सारे विचार एवं नवाचार यात्रा - अवधि में ही पुष्पित-पल्लवित- परिमार्जित हुआ करते हैं। यात्रा जीवन की अहर्निश गति है। सुबह जगने के बाद प्रत्येक को यात्रा पर निकलना होता है- अंतर बस इतना है कि आपके परिक्रमा पथ का दायरा क्या है ! जिसप्रकार पुस्तकें जीवन की रक्तहीन स्थानापन्न होती है, उसीप्रकार यात्रा जीवन की अस्थिमज्जा है। यात्रा के अनेकानेक माध्यम हैं - पद यात्रा, रथ यात्रा, रेल यात्रा, हवाई यात्रा आदि। आजकल जो यात्रा जनमानस के बीच परिचर्चा का केंद्रबिंदु बना हुआ है, वह है- भारत जोड़ो यात्रा । यह यात्रा भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के नेता श्री राहुल गाँधी के नेतृत्व में कन्याकुमारी से कश्मीर तक की जा रही है। यात्रा अब तक 3500 किलोमीटर से अधिक की दूरी सफलतापूर्वक तय करके अपने अंतिम चरण में जम्मू- कश्मीर पहुँच चुकी है। यात्रा का समापन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 75वीं पुण्यतिथि के अवसर पर 30 जनवरी 2023 को श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में राष्ट्रीय झंडा तिरंगा के झंडोत्तोलन के साथ प्रस्तावित है। विदित हो कि भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत 7 सिंतबर 2022 को भारतवर्ष के दक्षिणतम बिंदु कन्याकुमारी से हुई थी।
कहते हैं न, राह चलने से बटोही बाट की पहचान कर ले। ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा के वास्तुकार-सह-नेतृत्वकर्ता अग्रिम बटोही श्री राहुल गाँधी के बारे में जानना अपेक्षित है। आपका जन्म 19 जून 1970 को हुआ है। यह वही दिवस है जिस दिन एशिया महादेश के सबसे लम्बे सड़क पुल - गंगा नदी पर निर्मित लगभग 6 किलोमीटर लम्बे पटना- हाजीपुर पथ; महात्मा गाँधी सेतु - का शिलान्यास हुआ था। इसप्रकार, प्रकृति की गोद में कदम रखते ही इस शख्सियत ने जीवन का जो पहला पाठ सीखा, वह है जोड़ना। जी हाँ,
सेतु का काम ही होता है जोड़ना । विदित हो कि यह, वह सेतु था, जिसकी बुनियाद श्री राहुल गाँधी की दादी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने रखा था, जो प्रायः कहा करती थी - 'सम्पूर्ण ब्रह्मांड ही मेरा विश्वविद्यालय है' । यह एक अद्भुत संयोग कहा जाएगा कि राहुल गाँधी के जीवन के 18 वर्ष पूरा होने पर सार्वभौमिक मताधिकार की आयु 21 वर्ष से कम करते हुए 18 वर्ष करने सम्बन्धी 61वां संविधान संशोधन विधेयक पारित हुआ था। इसप्रकार 20 दिसंबर 1988 से सम्पूर्ण भारतवर्ष में यह कानून लागू कर दिया गया था।
इसप्रकार, पूर्णतः समभाव एवं समदर्शी माहौल में पले-बढ़े श्री राहुल गाँधी के मन-मस्तिष्क पर राष्ट्र की एकता, अखण्डता, आत्मा, अस्मिता, आबरू के रक्षा का भाव सर्वोपरि रहा है। ऐसे में जब उन्होंने महसूस किया कि भारतवर्ष के बुनियादी वसूलों के साथ समझौता किया जा रहा है तब ऐसे में उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के महापुरुषों के सेवार्थ एवं स्मरणार्थ अपने कर्तव्यों के सम्यक निर्वहन का उत्तरदायित्व स्वीकारते हुए भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत करने का निश्चय किया। उन्हें यह अनुभूति हो गई थी कि विपक्ष एवं विपक्षी दलों के नेताओं की आवाज़ जनता तक नहीं पहुंचने दी जा रही है। जरूरी नहीं कि जनमानस को भ्रमित रखने के लिए प्रत्येक दौर में जोसेफ गोएबल्स की ही आवश्यकता हो ! रूसी कवि एवनेका का कहना है - 'जब सच्चाई का स्थान चुप्पी ले लेती है तब चुप्पी झूठ बन जाती है।' ऐसे में जनमानस को सच्चाई से रूबरू कराना राहुल गाँधी ने अपना ईमान समझा है। विदित हो कि हर दौर में ऐसे मूर्धन्य, त्यागी, समदर्शी, दूरद्रष्टा राजमर्मज्ञ जन्म लेते रहे हैं जो कर्म पर फिदा होना अपना ईमान समझते हैं। यह एक राष्ट्रीय कर्तव्य है । यह यात्रा, जैसा कि यात्रा में शामिल हुए ख्यातिलब्ध बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह ( सावधान इंडिया फेम) ने कहा, भारत जोड़ो यात्रा है; काँग्रेस जोड़ो यात्रा नहीं है, वाकई में एक राष्ट्रव्यापी अभियान का स्वरूप धारण कर चुका है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश होते हुए जम्मू-कश्मीर पहुँची भारत जोड़ो यात्रा जिन स्थानों से होकर गुजरी है वहां जनमानस में एक आशा का नवसंचार प्रवाहित हुआ है। बच्चे-युवा-बुजुर्ग महिलाएं-पुरुष सबों ने समवेत स्वर में मुक्तकंठ से इस यात्रा के इकबाल का इस्तकबाल किया है। यात्रा की तस्वीरों के माध्यम से प्रत्येक राज्य की लोक- संस्कृति, बोल-चाल, परंपरा, सामाजिक सरोकार, ऐतिहासिक अभिलेख, पहनावा, खान-पान एवं आंचलिकता को जीवंत तरीके से अनुभव किया जा सकता है। ब्रिटिश भाषाविज्ञानी जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने कहा था कि भारतवर्ष में प्रत्येक डेढ़ कोश की दूरी पर पानी का स्वाद और तीन कोश की दूरी पर वाणी का स्वरूप परिवर्तित हो जाता है। एक कोश से अभिप्राय है लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी | यात्रा के माध्यम से वर्तमान पीढ़ी द्वारा इस विविधता का सजीव अनुभव एवं अध्ययन किया जा रहा है। यात्रा के संस्मरणों को आगामी पीढ़ियों के प्रबोधनार्थ अभिलेख स्वरूप सहेजकर रखा जा सकता है। सतत विकास की यह परिपाटी मानव, मानवता, मानवीयता के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। विदित हो कि प्रत्येक पीढ़ी एक नया राष्ट्र होता है। प्रत्येक पीढ़ी के अपने राष्ट्रनायक होते हैं।
भारत जोड़ो यात्रा का दार्शनिक पक्ष
मानव इतिहास को रूपांतरित करने में चार महान अविष्कारों का सर्वोच्च स्थान रहा है :
आग - भोजन पकाने की शुरूआत।
पहिया - समय पर दूरी ।
बिजली- औद्योगिक क्रांति प्रारंभ।
इंटरनेट - दूरसंचार आपके द्वार।
ठीक उसीप्रकार, दुनिया के इतिहास में संविधान- संविधानवाद-संवैधानिक संस्थाओं के निर्माण में 15 जून 1215 को ब्रिटेन में प्रारम्भ हुए मैग्नाकार्टा से लेकर चार महान क्रांतियों - गौरवपूर्ण क्रांति, ब्रिटेन (1688 ई.), अमरीकी क्रांति (1776 ई.), फ्रेंच क्रांति (1789 ई.), एवं रूस की क्रांति (1917 ई.) का महती योगदान रहा है। आज हम जिस राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक न्याय के आग्रही एवं प्रहरी हैं उसकी बुनियाद इन क्रांतियों ने ही रखी है। ये अधिकार मानव समुदाय को चैरिटी में प्राप्त नहीं हुए हैं। उपरोक्त क्रांतियां इस बात का स्मरण कराती है कि प्रत्येक पीढ़ी को अपने हक की सतत रक्षा हेतु सड़क पर आना होता है। विदित हो, जैसा कि डॉ. राममनोहर लोहिया कहा करते थे, "सड़कें जब सुनी हो जाती है तब संसद आवारा हो जाती है।" ज्ञात हो कि 'मनुष्य (अधिकार) बनाम राज्य ( कर्तव्य )' का द्वंद मानव सभ्यता शुरू होने के साथ ही प्रारम्भ हो गया था। मनुष्य को जहां अधिकार चाहिए था, वहीं राज्य लोगों से कर्तव्यपरायणता की अपेक्षा करता है। ऐसे में एक 'सामाजिक समझौता' ( सोशल कॉन्ट्रैक्ट) के तहत 'राज्य' नामक संस्था का सृजन करते हुए उसे समाज संचालन के दैनंदिनी कार्यों का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया था। उद्देश्य था कि राज्य, समाज का प्रहरी होगा न कि अभिभावक। दूसरे शब्दों में, जिसप्रकार अठारहों पुराण का दो ही दर्शन है, जैसा कि स्वयं इसके रचयिता महर्षि वेदव्यास ने लिखा है, "दूसरों का भला करना पुण्य है जबकि दूसरों को पीड़ा देना पाप है। " ठीक उसी प्रकार, "राज्य एवं मनुष्य" के बीच अधिकार बनाम कर्तव्य का घोषित-अघोषित द्वंद चलता आ रहा है। ऐसे में जब कभी यह संतुलन राज्य के पक्ष में ज्यादा झुकना शुरू होता है अथवा ऐसे होता हुआ प्रतीत होता है, तब समय-समय पर सिविल सोसायटी द्वारा विपक्षी राजनीतिक दलों की अगुवाई संतुलन-सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश होती रही है। विडम्बना यह है कि सोशल मीडिया के अनियंत्रित, बेलगाम एवं बेजा इस्तेमाल से पूरी की पूरी एक ऐसी पीढ़ी अस्तित्व में आ गई है जो 'स्वेच्छातंत्रवाद' का आग्रही है। यह परिघटन वैश्विक स्तर पर दृष्टिगोचर है। ऐसे में इस संक्रमणकाल को 'सत्यातीत' ( पोस्ट-ट्रुथ ) युग कहा जा रहा है। जहां लोग सत्य का परीक्षण करना दूसरों की जिम्मेदारी समझते हैं।
ऐसे संकटकाल में जब भारतवर्ष जैसे देश में स्वयं समाज अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ता हुआ प्रतीत हो रहा हो, तब स्वाभाविक रूप से भारतवर्ष की आज़ादी की कस्टोडियन रही ग्रैंड ओल्ड पार्टी भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, जिसने 61 वर्ष 7 माह 17 दिनों तक सफलतापूर्वक आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए उस ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता से राष्ट्र को मुक्ति दिलाई थी, जिसके मातहत कभी सूर्यास्त नहीं हुआ करता था। ऐसे में राष्ट्र की आज़ादी के प्लेटिनम जुबली वर्ष में राष्ट्रीय चेतना को एकबार पुनः जागृत करने के लिए काँग्रेस ने अपने रचनात्मक कार्य परिपाटी की वापसी की है। भारतवर्ष एवं इसके सवा अरब से अधिक की आबादी के लिए यह एक शुभ संकेत है।
भारत जोड़ो यात्रा की प्रासंगिकता
यह यात्रा समाज में खूंटा बनने का कार्य करेगा। लोग जब गिरने लगते हैं, फिसलन का शिकार होते हैं, तब खूंटा का सहारा लेकर स्वयं को बचाते हैं। ठीक उसीप्रकार यह यात्रा जनमानस के अंतर्मन, अंतरात्मा, आत्मबल को व्यापक फलक प्रदान करने में मददगार सिद्ध होगा। जहां तक यात्रा से राजनीति एवं राजनीतिक लाभ का आशय है तो ऐसे में यह यात्रा तमाम राजनीतिक समूहों को प्रेरित, अगर प्रेरित
नहीं तो बाध्य जरूर करेगा कि वे जनता के बीच जाकर 'शासन आपके द्वार' की अवधारणा को साकार करें। यात्रा के प्रति राहुल गाँधी का संकल्प देखकर अनायास ही जयशंकर प्रसाद की रचना 'समुद्रगुप्त' के पात्र सिंहरण का स्मरण होता है - "मुझे भूत की चिंता नहीं, भविष्य की परवाह नहीं । हाँ; मैं वर्तमान को अपने अनुकूल बना लूंगा यह विश्वास है" । ठीक वैसे ही राहुल गांधी ने अपने अनुशासन, इच्छाशक्ति, प्रतिबद्धता, संकल्पशक्ति के माध्यम से एक वैचारिकी की शुरुआत की है जिसका दर्शन है - 'डरो नहीं'; यद्यपि थॉमस हॉब्स ने 'लेवियाथन' नामक चर्चित पुस्तक में लिखा है कि दुनिया में मनुष्य और मनुष्य का भय साथ-साथ आता है। सम्भव है जिस राहुल गाँधी ने अपने परिवार को एकाधिक बार निर्मम हिंसा का शिकार होते हुए देखा है, उससे उन्हें भय पर विजय पाने में मुक्ति मिली हो। इस हाड़ गलाने वाली माघ महीने की भीषण ठंड में उनका आधी बाजू का सफेद टी-शर्ट पहनकर जम्मू-कश्मीर की बर्फीली हवा के बीच यात्रा करना उनकी इसी तपस्या एवं साधना का परिणाम प्रतीत होता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के धोती की भांति यह सफेद टी-शर्ट सच्चाई एवं पवित्रता का पर्याय बन चुका है। एक अभियान बन चुका है भारत जोड़ो यात्रा। अब तो खबर आ रही है कि भारत जोड़ो यात्रा का अगला चरण 'पूरब पश्चिम भारत को जोड़ने हेतु आहूत किया जाएगा।
-
उपनिषद में लिखा गया है, "चरैवेति-चरैवेति" ( चलते रहे- चलते रहे ), समाधान अवश्य निकलेगा। जबकि राहुल गाँधी ने कहा है - "नफरत के बाजार में मुहब्बत की दुकान खोलने ।
-
आया हूँ।" उपरोक्त दोनों ही कथन का भाव लगभग समानार्थक है - 'कर्मयोगी बनना।' भारत जोड़ो यात्रा के बारे में अंतिम रूप से मेरा मानना है कि श्री राहुल गाँधी ने अपने 'मानव-मानवता-मानवीयता' दर्शन को साक्षी मानकर भारतवर्ष को उसके स्वर्णिम दिनों में वापसी की उम्मीद के
साथ इस यात्रा का शंखनाद किया है। कम-से-कम अंतर्मन में अफसोस या आत्मग्लानि तो नहीं रहेगा कि मैंने राष्ट्र के महापुरुषों के त्याग की रक्षा नहीं की ! सोंचिए, आखिर त्रेतायुगीन उस 'जटायु' ने क्या सोचा होगा ? क्या वह रावण से माँ सीता की रक्षा कर सकता था ? उसने अपने कर्त्तव्य का सम्यक निर्वहन किया था । और वह कर्तव्य था - 'मेरी ( जटायु) गिनती माँ सीता की रक्षा करनेवालों में होगी ' । उसीप्रकार, भविष्य में राहुल गाँधी की गिनती भारतमाता को उसकी गरिमा वापस दिलानेवालों में होगी। दीवार पर लिखी इबारत हमेशा सच कहता है। समय हमेशा सच कहता है। वर्तमान ही सत्य है। और वर्तमान यह है कि एक अकेला शख्सियत भारतवर्ष को जोड़ने हेतु लंबी यात्रा पर निकल चुका है। उसके पैरों की चाप सत्ता तंत्र को कुछ यूं आगाह करती है - "दीवारों के भी कान होते हैं लेकिन हमारे शासकों के कान के भीतर दीवार नहीं होने चाहिए"!
"मैन ऑफ डेस्टिनी" श्री राहुल गाँधी के नेतृत्व में जारी भारत जोड़ो यात्रा का संदेश उनकी सफेद टी-शर्ट की सफेदी की भांति स्पष्ट है; जैसा कि फ्रेंच दार्शनिक अल्बर्ट कामू ने लिखा है -
"मेरे आगे न चलें, सम्भवतः मैं आपका अनुसरण ना कर सकूँ। मेरे पीछे मत चलें, सम्भवतः मैं नेतृत्व ना कर सकूँ। आप मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चलें और अपना दोस्त बनाकर मुझे कृतार्थ करें। "
#भारत जोड़ो यात्रा
रौशन शर्मा
What's Your Reaction?