इंडिया की तीन सौ से ज्यादा सीटों पर होगी आसान जीत, खुद को दोहराएगा 2004 का इतिहास

Apr 13, 2024 - 13:57
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इंडिया की तीन सौ से ज्यादा सीटों पर होगी आसान जीत, खुद को दोहराएगा 2004 का इतिहास



कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन इस बार इतिहास रचने जा रहा है. न्यायपत्र, 2024 को भावी भारत की रूपरेखा के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी के दिशाहीन और दमनकारी शासन के दस साल से छाए मायाजाल को तोड़ने के लिए कांग्रेस ने कमर कस ली है. 2024 का आम चुनाव अन्याय बनाम न्याय की लड़ाई बन गया है. 

 

भारतीय राजनीति के इतिहास में ये पहला मौका है, जब राजनीति को आर्थिक-सामाजिक न्याय से जोड़ा गया है. संसाधनों के एकाधिकार को तोड़ कर कतार के आखिरी आदमी को आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ी जा रही है.  इस लड़ाई को नारों से जमीन पर लाने का काम कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुआई में संभव हो सका है.

 

राहुल गांधी ने बीजेपी के तैयार किए जा रहे नफरत के बाज़ार में मोहब्बत की दुकान के जरिए इस बदलाव की नींव रखी है. कन्याकुमारी से चलते वक्त किसी को आभास तक नहीं था कि सचमुच चंद साथियों के साथ शुरू हुई इस यात्रा को पूरादेश  अपनी यात्रा बना लेगा. सैंकड़ों से हजारों और हजारों से लाखों लोग जुड़ते चले गए. और अब करोड़ों का कारवां बन चुका है, जो अन्याय को समाप्त कर न्याय का राज स्थापित करने के लिए खड़ा हो चुका है.

 

प्रयागराज में राहुल गांधी ने एक युवा को कहा था- मौर्या जी अब नीचे नहीं बैठना है, ऊपर बैठना है. देेश के वंचित-दलित समाज तक राहुल गांधी का ये संदेश पहुंच चुका है. संसाधन विहीन समाज की ये लड़ाई कांग्रेस संसाधनों के बगैर लड़ रही है. पार्टी के खाते बंद कर दिए गए हैं. सारी संवैधानिक संस्थाएं बिक चुकी है. उसके पास सिर्फ सत्य,न्याय और जन का साथ है. राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बारे कहते हैं, जब सरकार,संवैधानिक संस्थाएं और मीडिया के गूंगे-बहरे होने के कारण सीधे जनता की चौपाल में आना पड़ा. जनता अब सुनवाई कर रही है औऱ इस लड़ाई का असर अब ज़मीन पर देखने को मिल रहा है. मीडिया सत्ता से सवाल पूछना भले ही भूल चुकी है, लेकिन अब बीजेपी नेताओं से जनता जवाब मांग रही है.

 

राहुल गांधी और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को जनता का जितना स्नेह मिल रहा है, उससे साफ है कि इस बार बदलाव तय है. इस बार धार्मिक भावनाओं को भुनाने की साजिश नहीं चलेगी और जनता अपना हक लेके रहेगी.

 

अगर आंकड़ों पर भी नज़र डाले तो साफ नज़र आता है कि इंंडिया गठबंधन के लिए इस बार तीन सौ पार करना लगभग तय हो चुका है. इसकी एक बड़ी वजह है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, राजस्थान,यूपी,  बिहार, झारखंड, दिल्ली और गुजरात की कुल 242 सीटों में से 211 बीजेपी गठबंधन को हासिल हुई थी. जो अब तक कि अधिकतम सीटें मानी जा रही है. इस बार इन सीटों के आधे होने के आसार समझे जा रहे है.

 

वहीं महाराष्ट्र, प.बंगाल, और कर्नाटक में भी कुल 118 सीटों में से बीजेपी को 84 सीटें बीजेपी को मिली थी. इन एक दर्जन राज्यों में बीजेपी की मिली सीटों को अब तक कि अधिकतम उपलब्धि माना जा रहा है. इन्ही राज्यों से बीजेपी गठबंधन कुल 295 सीटें लेकर बहुमत का आंकड़ा पार कर चुकी थी.

 

कहना न होगा कि  2019 में पुलवामा हमले से आंदोलित जनता बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के कारण ज़मीनी मुद्दे हवा हो चुके थे. वहीं,  इस बार बीजेपी को राम मंदिर, हिंदुत्व के मुद्दे से खासी उम्मीद है. लेकिन इस बार जनता भावना के आधार पर वोट करने के पक्ष में नहीं है. 

लोकहित-सीएसडीएस सर्वेक्षण से पता चला है कि 27 फीसदी मतदाता बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा मान रहे हैं. यानि सालाना दो करोड़ का मोदी सरकार का दिखाया सपना चूर-चूर हो चुका है.  

19 राज्यों में दस हजार लोगों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई इस रिपोर्ट में 23 फीसदी लोग महंगाई को लेकर भी परेशान नज़र आए और उन्होंने इसे अहम चुनावी मुद्दा बताया. कांग्रेस ने इलेेक्टोरल बांड से जोड़ कर जनता को बता दिया है कि मोदी सरकार उद्योगपतियों की सरकार है, उनके लिए कर्ज माफी हो रही है. उनसे चंदा लेेकर धंधा दिया जा रहा हैै. आर्थिक अपराधों से मुक्त किया जा रहा है. चुनाव सिर पर है और महंगाई एक बार फिर सिर चढ़ कर बोल रही है. लिहाजा इस बार बेरोजगारी और महंगाई की मार की वजह से मोदी सरकार के खिलाफ प्रबल सत्ताविरोधी लहर है.

यही वजह है कि कई राज्यों में बीजेपी प्रत्याशी को विरोध का सामना करना पड़ रहा है और चुनाव प्रचार करना तक मुश्किल हो रहा है. राष्ट्रीय मीडिया बीजेपी से मिल कर योजनाबद्ध तरीके से सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने की कोशिश कर रही है. लेकिन सोशल मीडिया पर जनता के मुद्दे हावी नज़र आ रहे हैं. 

 

वहीं कांग्रेस के न्याय पत्र 2024 ने समाज से सभी वर्गों में उम्मीद जगाई है. पांच न्याय के साथ 25 गारंटी के जरिए कांग्रेस घर-घर अपनी पैठ बना रही है. गारंटी कार्ड में  युवाओं, महिलाओं, किसान और श्रमिकों को न्याय दिलाने की बात कही गई है. और घर-घर गारंटी कार्यक्रम से ये न्यायपत्र हर घर में पहुंचाया जा रहा है.

 

वहीं अगर  2019 के आम चुनाव में राजनीतिक दलों के प्रदर्शन के आधार पर भी विश्लेषण किया जाए तो मोदी सरकार का सत्ता से बेदखल होना तय माना जा रहा है. 2019 के आमचुनाव में बीजेपी ने दक्षिण की 131 सीटों में से सिर्फ 30 सीटें हासिल की थी. इन में से  26 कर्नाटक और 4 तेलंगाना की थी. इस बार कांग्रेस ने कर्नाटक की 28 में से 20 सीटें जीतने के लिए कमर कस ली है. ऐसे में पांच दक्षिणी राज्यों में बीजेपी की 16 से कम सीटें जीतने के आसार बताए जा रहे हैं.

 

इस बार कांग्रेस-बीजेपी के सीधे मुकाबले की 190 सीटों में कांग्रेस को खासी बढ़त मिलना तय माना जा रहा है. पिछली बार बीजेपी को इनमें से 175 सीटें हासिल हुई थीं. यही नहींं, भावनाओं में बह कर जनता ने 153 सीटों पर पचास फीसद से ज्यादा वोट बीजेपी को दिए थे. इस बार इंडिया गठबंधन में विपक्षी दलों के साथ आने की वजह से गैर-बीजेपी वोटों के बंटने के आसार बेहद कम हो गए हैं.

 

2019 के आम चुनाव में करीब 185 सीटों पर क्षेत्रीय पार्टियों की बीजेपी से सीधी टक्कर रही है. दोनों के बीच 7 फीसदी के वोटों का फासला था. बीजेपी को 47.2 प्रतिशत वोटों के साथ 128 सीटें मिली थीं तो क्षेत्रीय पार्टियों को 40.2 फीसदी वोट के साथ 57 सीटें हासिल हुई थीं. अहम बात ये है कि इनमें सेे 88 सीटों पर कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही थी. लेकिन इस बार विपक्ष के एकजुट होने के कारण बीजेपी के सत्ता तक पहुंचना मुश्किल हो गया है.

 

वहीं,  मोदी सरकार के भ्रष्टाचार औऱ इलेक्टोरल बांड से जुड़े सनसनीखेज खुलासे भी मतदाता को राय बनाने में असर डाल रहे हैं. लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षण से पता चला है कि पचपन फीसदी लोग मानते हैं कि पिछले पांच साल में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है. 

 

राहुल गांधी सही कहते हैं कि प्लेयर खरीद कर, कैप्टन को डरा कर, अंपायर पर दबाव डाल कर और EVM के दम पर 400 पार का नारा लगा रहे हैं. जबकि हकीकत में सब मिला कर भी वह 180 पार करने की हालत में नहीं हैं.

 

ऐसे में अगर ज़मीनी हकीकत की बात करें  तो  कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि बीस साल बाद 2004 का इतिहास खुद को दोहराएगा. 2004 में करोड़ों रुपए का इंडिया शाइनिंग का प्रचार धरा का धरा रह गया था. जनता ने एनडीए को सत्ता से बेदखल कर दिया था. इस बार तानाशाही के खिलाफ पूरे विपक्ष के एकजुट होने से बीजेपी और मोदी की घबराहट और बैचेनी साफ झलकने लगी है. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के नजरिए से हर बात कर रहे हैं. लेकिन ये पब्लिक है, सब जानती है.

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