180 सीटों पर सिमट जाएगी भारतीय जनता पार्टी, राहुल गांधी के बयान के क्या है मायने
इन दिनों देश भर में चर्चा है कि बीजेपी 2024 आम चुनाव में 180 सीटें पार नहीं कर पाएगी. देश के बुद्धिजीवी वर्ग में तो इसकी खासी चर्चा है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित हुई इंडिया गठबंधन की रैली में ऐलानिया तौर पर कहा कि
‘नरेंद्र मोदी इस चुनाव में मैच फिक्सिंग करने की कोशिश कर रहे हैं। ये जो उनका 400 सीट का नारा है, ये बिना ईवीएम, बिना मैच फिक्सिंग, बिना सोशल मीडिया और प्रेस पर दबाव डाले ये 180 के पार नहीं होने जा रहे हैं’
समझा जा रहा है कि देश के प्रबुद्ध वर्ग, नीति निर्धारकों, और प्रशासनिक अधिकारियों से मिली जानकारी के आधार पर राहुल गांधी इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं. वहीं कांग्रेस नेेता और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियांक खड़गे ने भी आरएसएस के आंतरिक सर्वेक्षण के हवाले से हाल ही में बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि बीजेपी 200 सीटें भी पार नहीं कर पाएगी.कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी साफ कहा है कि 2024 में बीजेपी 200 पार करने की भी हालत में नहीं है.
सोशल मीडिया में राजनीति के जानकार भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि बीजेपी की घबड़ाहट की असली वजह यही है. क्योंकि दक्षिण भारत के पांचों प्रांतों में बीजेपी को हस्बे मामूल सीटें मिल पाएंगी. 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने दक्षिण की 131 सीटों में से सिर्फ 30 सीटें हासिल की थी. इन में से 26 कर्नाटक और 4 तेलंगाना की थी. इस बार कांग्रेस ने कर्नाटक की 28 में से 20 सीटें जीतने के लिए कमर कस ली है. ऐसे में पांच दक्षिणी राज्यों में बीजेपी की 16 से कम सीटें जीतने के आसार बताए जा रहे हैं.
कर्नाटक के अलावा महाराष्ट्र में भी बीजेपी के लिए बुरी खबर है. इंडिया गठबंधन में सीटों पर सहमति बनने के बाद साफ हो गया है कि बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना औऱ अजित पवार की एनसीपी के साथ मिल कर भी ज़मीन पर खड़े होने की हालत में नहीं है. यहां बीजेपी को कम से कम 23 सीटों के नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है.
ओड़िशा में भी नुकसान के अंदेशे से बीजेपी और बीजेडी ने अलग अलग लड़ने का फैसला किया है. लेकिन यहां
वहीं पूर्वी राज्यों की 117 सीटों में से बीजेपी को हद से हद 42 सीटें मिलने की उम्मीद है. हालांकि कई विशेषज्ञ इनसे भी कम सीटें मिलनेे का अंदेशा जता रहे हैं. प. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस भी बीजेपी का पुरजोर विरोध कर रही है. मणिपुर में जातीय हिंसा पर काबू पाने में नाकामी की वजह से पूर्वोत्तर राज्यों में बीजेपी को बढ़त मिलने से रही. वहीं असम में भी मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वशर्मा की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की हर कोशिश के बावजूद बीजेपी के पक्ष में माहौल नहीं बन पा रहा है. अलबत्ता सीएए को लेकर ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ने उग्र प्रदर्शन किया है.
माना जा रहा है कि बीजेपी तमिलनाडु ओड़िशा, और आंध्र में होने वाले नुकसान की भरपाई की कोशिश में जुटी है.
गुजरात में भी पार्टी के नेता और जनता बगावत पर आमादा है. जानकारों का मानना है कि गुजरात में भी कम से कम 11 सीटों का नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ेगा. आम आदमी पार्टी के गठबंधन में शामिल होने से इंडिया गठबंधन को एकजुटता का फायदा मिलना तय है.
वहीं, उत्तर भारतीय राज्यों में बीजेपी ने 2019 के आम चुनाव में पहले से ही अपनी अधिकतम सीटें हासिल की थी. जिसके बढ़ने के बजाय कम होनेे की ही संभावना ज्यादा है. यूपी, बिहार, गुजरात,हरियाणा,राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पहले जैसा प्रदर्शन कती संभव नहीं है. राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी-आरएसएस की अपेक्षाओं के अनुरूप परवान नहीं चढ़ पाया. देश भर के युवा बेरोजगारी की मार से परेशान हैं. एमसएसपी के लिए आंदोलन कर रहे किसानों पर बीजेपी शासित राज्यों में लाठियां बरसाई जा रही है. इसी वजह से ऐन आखिरी मौके पर हरियाणा में जननायक जनता पार्टी और पंजाब में शिरोमणि अकाली दल का एनडी गठबंधन से अलग होना इंडिया गठबंधन के वोट काटने की बीजेपी की रणनीति का ही हिस्सा है. तो जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबंधन पूरी तरह एकजुट है. सांप्रदायिक राजनीति करने वाली बीजेपी को जम्मू में भी पैर जमाने की जगह नहीं मिल पा रही है.
हर राज्य में बीजेपी की सीटें बढ़ने के बजाय घटने के ही आसार हैं. गोदी मीडिया को छोड़ कर मीडिया और सोशल मीडिया के सभी सर्वेक्षण औऱ चुनावी आकलनों को देखते हुए ये साफ है कि बीजेेपी को इन आम चुनाव में कम से कम एक सौ बीस लोकसभा सीटों का नुकसान होगा. यानी चार सौ पार बहुत दूर की कौड़ी है. बीजेपी अपने पिछली बार 303 के रिकॉर्ड से सौ से सवा सौ सीटें पीछे रहेगी.
फिर बीजेपी का चार सौ पार का दावा क्यों
180 सीटों पर सिमटने के अंदेशे से बीजेपी औऱ पीएम मोदी में गहरी हताशा है. ऐसे में चारों तरफ नज़र आ रही सत्ताविरोधी लहर को छिपाने के लिए राष्ट्रीय मीडिया पर कड़ा नियंत्रण कर लिया गया है. बल्कि मीडिया के जरिए ही चार सौ पार की हवा बनाने की कोशिश की जा रही है. टीवी चैनलों के चुनावी सर्वेक्षण बीजेपी के प्रचार अभियान का हिस्सा हैं. जनता भी इन ओपीनियन पोल्स को मनोरंजन मानने लगी है. दरसल मुद्दों की राजनीति की बजाय बीजेपी परसेेप्शन की पॉलिटिक्स करती है. लिहाजा वो मोदी है तो मुमकिन है जैसे परसेप्शन से जनमत को प्रभावित करने की कोशिश करती रही है. मज़े की बात ये है कि करोड़ों लोगों से जन संवाद के बाद बने कांग्रेस के न्याय पत्र 2024 से बीजेपी खेमें में मायूसी का आलम है. न्याय पत्र का बचकाने तरीके से विरोध किया जा रहा है.
चार सौ पार के लिए बीजेपी कुछ भी करेगी !!
180 पार करने से लाचार बीजेपी अब साम-दाम दंड भेद हर तरीका अपनाने पर आमादा है. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए लगातार उकसाने वाले बयान और गतिविधियां तेज़ होती जा रही है. कांग्रेस की खातेबंदी कर दी गई है. इंडिया गठबंधन के दो मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तार कर लिया गया है. इंडिया गठबंधन के हर छोटे-मोटे नेताओं को बीजेपी में शामिल करा कर हवा बनाने की कोशिश जा रही है. शुचिता की बात करने वाली बीजेपी की हालत ये हो गई है कि 2024 के आम चुनाव में बीजेपी के हर चार प्रत्याशियों में एक दल बदलू है.यानि 417 में से 116 यानि 28 फीसदी दूसरी पार्टियों से आए हैं . अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को दरी बिछाने का काम दे कर जिताऊ उम्मीदवारों को टिकट दिया जा रहा है. जबकि इससे पहले पीएम मोदी को ये लगता रहा है कि सब प्रत्याशी उनके नाम से चुनाव जीत जाते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी अपने दस साल के कार्यकाल की कोई ठोस उपलब्धि नहीं बता पा रहे है. लिहाजा देश के पहले प्रधानंमंत्री जवाहर लाल नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी के फैसलों पर उंगली उठाई जा रही है. पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाली इंदिरा गांधी पर कच्चाथीवु देने के आरोप लगा कर पीएम मोदी का कद लगातार छोटा होता जा रहा है. कांग्रेस को मुस्लिम लीग से जोड़ना और राम मंदिर विरोधी बताना पीएम मोदी की हर प्रचार रैली में सुना जा सकता है.
पीएम मोदी को सेना की वर्दी में दिखा कर राष्ट्रवाद जगाने का खेल भी चल रहा है, लेकिन लद्दाख में चीन के अतिक्रमण के खिलाफ लोगों के एकजुट होने से 56 इंच का सीना सिकुड़ गया है. आम तौर पर प्रधानमंत्री कम्युनल कार्ड चुनाव के चौथे-पांचवे चरण में खेलते रहे हैं. लेकिन 180 पार न कर पाने का डर बुरी तरह हावी हो गया है. लिहाजा पहले दौर के चुनाव प्रचार से ही देश में नफरती माहौल बनाना तेज कर दिया है.
बीजेपी की हताशा ही है कि गोदी मीडिया पर पूरी तरह नियंत्रण के बाद स्वतंत्र यूट्यूबर्स को बैन करना शुरू कर दिया है. आचार संहिता लगने के बावजूद सूचना प्रसारण मंत्रालय के इस कदम को बीजेपी में बैठ रहे खौफ से जोड़ कर देखा जा रहा है. गूगल एड और सोशल मीडिया के विज्ञापनों पर अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं. कई पत्रकारों,चुनाव विशेषज्ञों और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को खरीद लिया गया है.
यही नहीं चुनावी धांधली और दहशत फैलाने की साजिशों का भी खुलासा हो रहा है. दक्षिण भारत में एक बीजेपी प्रत्याशी के नज़दीकी रिश्तेदार से चार करोड़ रुपए की नकदी बरामद की गई है. वहीं केरल में एक बीजेपी कार्यकर्ता के घर से 770 किलोग्राम विस्फोटक बरामद किए गए हैं. वहीं बीजेपी के कई नेता चुनाव जीतने के लिए हथियार उठाने का भी खुले आम ऐलान कर रहे हैं.
सही कहा राहुल गांधी ने. अगर ईवीएम, बिना मैच फिक्सिंग, बिना सोशल मीडिया और प्रेस पर दबाव डाले बगैर निष्पक्ष औऱ स्वतंत्र चुनाव हुए तो बीजेपी 180 भी पार नहीं कर पाएगी.
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